सम्पादकीय ' कालिख में डूबते बच्चे '(नभाटा ७ मई २०२० )सही कहता है 'यह अंधा कुआं देश की ताज़ादम पीढ़ी को निगल जाए ,उसके पहले हमें घर के लड़कों को बचाने की कोशिशें तेज़ कर देनी चाहिए। सचमुच लोकडाउन के इस दौर में जबकि नेट एक सोशल ब्लेक हॉल बनता दिख रहा है। बच्चे हमारा उत्पाद मात्र रह गए हैं ,बाइप्रोडक्ट हैं, अनुकरण करतें हैं बड़ों का। मैं कई ऐसे घरों में गया जहां नेटफ्लिक्स ,हॉट स्टार अमेज़न प्राइम -वीडियो आन डिमांड पर ऐसे सीरियल धड़ल्ले से देखे जा रहें हैं जिनमें जनपदों में प्रचलित गाली को सामादृत किया जा रहा है। और यह सब बच्चों के साथ सांझा भी किया जा रहा है।यहां हैकिंग भी है बलात्कार भी। बहरहाल यह इस परिवेशीय दोष का एक पहलू भर है। हमारे चित्त का निर्माण करने वाले अनेक कारक हैं। नेट हमारी खुराक का हिस्सा बन रहा है विविध रूपों में। स्मार्ट फोन उसका एक आयाम भर है जो आन लाइन टीचिंग के इस दौर में हर बच्चे के हाथों में आ गया है। चयन हमारा अपना है दोष नेट में नहीं है हमारे चयन पसंदगी और वरीयता में है। किशोर मन एडवेंचरस होता है थ्रिल कुछ नया करने की वेगवती होती है किशोरवृन्द में । इ
कुम्भाराम या कुम्भकरण बतला रहें हैं मसखरा राहू हाल ही में राजस्थान की एक चुनावी सभा में मसखरा राहु ने एक कुम्भकरण लिफ्ट योजना का दो बार ज़िक्र किया ,जब तीसरी बार अशोक गहलोत साहब ने इस मसखरे को टहोका मारते हुए फुसफुसाया -कुम्भाराम आर्य तब यह बोला कुम्भा योजना हमने आरम्भ की है। हम यह पोस्ट अपने अनिवासी भारतीयों को बा -खबर करने के लिए लिख रहें हैं ,कि मान्यवर यह व्यक्ति (मसखरा राहु ,शहज़ादा कॉल ,मतिमंद दत्तात्रेय आदिक नामों से ख्यात )जब आलू की फैक्ट्री लगवा सकता है इनके महरूम पिता श्री गन्ने के कारखाने लगवा सकते हैं तब यह 'कौतुकी -लाल' श्री लंका में सुदूर त्रेता -युग में कभी पैदा हुए कुंभकर्ण को आराम से कुम्भाराम का पर्याय बतला सकता है इसके लिए दोनों में कोई फर्क इसलिए नहीं है क्योंकि इन्हें और इनकी अम्मा को न इस देश के इतिहास का पता है और न भूगोल का और ये मतिमंद अबुध कुमार अपने आप को स्वयं घोषित भावी प्रधानमन्त्री मान बैठने का मैगलोमनिया पाले बैठा है। भारत धर्मी समाज का काम लोगों तक सूचना पहुंचाना है।हमने किसी से कोई लेना देना नहीं है अलबत्ता भारत धर्मी समाज को सचेत करते रह