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Showing posts from September, 2018

मोकू कहाँ ढूंढें रे बन दे ,मैं तो तेरे पास में

मोकू  कहाँ ढूंढें रे बन दे ,मैं तो तेरे पास में                           (१ ) न तीरथ में न मूरत में न एकांत निवास में , न मन्दिर में न मस्जिद में ,न काबे कैलास में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                            (२ ) न मैं जप में न मैं तप में ,न मैं बरत उपास में , न मैं किरिया  -करम में रहता ,न मैं जोग संन्यास में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                           (३ ) न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में , न ही प्राण में न ही पिंड में ,न हूँ मैं आकाश में।  न मैं परबत के गुफा में ,न ही साँसों के सांस में।  मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में।                          (४ )  खोजो तो तुरत मिल जावूँ एक पल की तलाश में ,  कह त कबीर सुनो भई   साधौ   मैं तो हूँ बिस्वास में।  आदि श्री गुरुग्रंथ साहब जी से कबीर जिउ सलोक (१९७ -२०० ) कबीर हज काबे हउ जाइ था आगै मिलिया खुदाइ।  साईँ मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किंहीं फुरमाई गाइ।  कबीर हज काबे होइ होइ गइआ केती बार कबीर।   साईँ मुझ महि किआ खता मुखहु न बोलै पीर।  क

आगे -आगे देखिये होता है क्या , इब्तिदा -ए -इश्क है रोता है क्या ?

संबंधों का एक हिस्सा अब सार्वजनिक हो चला है। 'फेस बुक ' पर आप अंतरंग संबंधों की एक झलक तो देख ही सकते हैं। और 'बिग -बॉस'जैसे ग्रेट शोज़  में 'तू -तू, मैं -मैं ,से लेकर और बहुत कुछ -इक़रार से तकरार से खालिस राड़ तक सब कुछ।  'मुख चिठ्ठे' पर खुली किताब की तरह  अंतर्संबंधों को लाना अब बाबा आदम से व्युत्पन्न आदमी का शगल हो गया है। ताज़ा संदर्भ पद्मश्री से विभूषित अनूप जलोटा साहब का रहा है। ऐसा नहीं है के अदाकारों ने अदाकाराओं ने गायक - गायिकाओं ने  पूर्व में एक से ज्यादा शादियां नहीं की हैं विवाह पुनर्विवाह नहीं रचाये हैं लेकिन उनका सार्वजनिक प्रदर्शन  करके वह इतराये नहीं हैं ,प्रदर्शन से बचे ही रहे हैं।  प्रेम प्रदर्शन की वस्तु रहा  भी नहीं है। अध्यात्म का विषय है। दशम गुरु कलगीधर पातशा गुरुगोविंद सिंह कहते हैं : साँच कहूँ सुन लेओ सभै , जिन प्रेम कियो , तिन ही प्रभ पायो।  अलबत्ता प्रेम की गहराई को दिखलाने के लिए लैला- मजनूँ से लेकर वीर-ज़ारा  तक अनेक फ़िल्में बनी हैं। देवदास जैसी फ़िल्में तो बार -बार बनी हैं।आइंदा भी बनेंगी।   लेकिन ये फ़िल्में प्रेम का उदात

दोस्तों ये सावधान रहने का वक्त है, जो राहुल गांधी भोले की आँखों में धूल झौंक सकता उसके लिए भारत और भारत धर्मी समाज क्या चीज़ है

*राफेल* *_बात शुरू होती है वाजपेयी सरकार से तब अटलजी के विशेष अनुरोध पर भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रम्होस मिसाइल तैयार की थी जिसकी काट आजतक दुनिया का कोई देश तैयार नही कर सका है। विश्व के पास अबतक ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नही जो ब्रम्होस को अपने निशाने पर पहुंचने से पहले रडार पर ले सके। अपने आप मे अद्भुत क्षमताओं को लिये ब्रम्होस ऐसी परमाणु मिसाइल है जो 8000 किलोमीटर के लक्ष्य को मात्र 140 सेकेंड में भेद सकती है। और चीन के लिये यह लक्ष्य भेदन क्षमता ही सिरदर्द बनी हुई है। न चीन आजतक ब्रम्होस की काट बना सका है न ऐसा रडार सिस्टम जो ब्रम्होस को पकड़ सके।_* _अटलजी की सरकार गिरने के बाद सोनिया के कहने पर कांग्रेस सरकार ने ब्रम्होस को तहखाने में रखवाकर आगे का प्रोजेक्ट बन्द करवा दिया जिसमें ब्रम्होस को लेकर उड़ने वाले फाइटर जेट विमान खरीदने फिर देश में तैयार करने की योजना थी जो अधूरा रह गया। दस वर्षों बाद जब मोदी सरकार आई तब तहखाने में धूल गर्द में पड़ी ब्रम्होस को संभाला गया वह भी तब! जब मोदी खुद भारतीय सेना से सीधा मिले तो सेना ने व्यथा बताई कि हमारे पास हथियारों की बेहद कमी है कोई खरीद हो नही

अनकही :कांग्रेस की लाज अब भोले के हाथ

कांग्रेस की लाज अब भोले के हाथ  इसे भोले बाबा का चमत्कार ही कहा जाएगा युवराज को भोले  के परिसर में ईर्ष्या कहीं भी दिखलाई नहीं दी। इसका मतलब साफ़ है ईर्ष्या मोदी की संसद में ही थी। यदि शहजादे के अंदर होती तो वहां भी दिखलाई देती।  उनका शायद ख्याल था ईर्ष्या  वहां  भी हो लेकिन उनका अब ये मत पुख्ता हो चुका है ईर्ष्या  सिर्फ और सिर्फ मोदी की संसद में है भोले की संसद में नहीं है।  जो हो यदि उनका मन निर्मल हुआ है भांडा साफ़ हुआ  है अंदर से तो यह अच्छा ही है। मालूम हो घृणा एक प्रकार का विष होता है और भोले तो जन्मजात विषपाई हैं विषपान करते हैं इसीलिए नीलकंठ कहलाते हैं।  लेकिन इस सबसे सुरजेवाला बहुत निराश हैं अलबत्ता उनके अलावा भी कई और उनके चिरकुट लगातार उन्हें सन्देश प्रसारित कर रहें हैं वहां जफ्फी मत पाना किसी की।  वहां सब का मन निरंजन है उज्जवल है शांत और भक्ति भाव से प्रशांत हैं। अब अगर शहजादे साहब स्वेत वस्त्रों के  अंदर अधोवस्त्र भी कहीं लाल पहने होते तो सुरजेवाला अब तक उन्हें हनुमान भक्त घोषित करवा देते आखिर हनुमान भी तो शिवजी के ही अवतार हैं।  पहली सीढ़ी चढ़ गए हैं राहुल बाबा।

इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो बाप का नाम पूछने पर खुश होकर कहते हैं माओत्से ,देश का नाम पूछने पर भी कहते हैं माओत्से

मार्क्सवाद के मानसिक गुलाम लेफ्टिए खुलकर सामने आ गए हैं। कहने लगें हैं हम संसद के अंदर धोंस-पट्टी से  जाएंगे। संसदीय अधिकारों के अंदर से देश को तोड़ेंगे। कन्हैया ने जो भी कहा था उसको आगामी चुनाव के लिए नामित करना उसके प्रलाप पर लेफ्टीयों का मुहर लगाना है.    अब सवाल उठता है के वृहत्तर समाज क्या ये सब कुछ चुपचाप देखता रहेगा या इन मानसिक रोगियों के इलाज़ के लिए आगे आएगा। इनका इलाज इनकी जमानतें ज़ब्त कराना है क्योंकि ये लोग सहामनुभूति के पात्र है जब कोई व्यक्ति मानसिक रोगी हो जाता है आम भाषा में विक्षिप्त या पागल हो जाता है उसे इलाज़ की ज़रुरत होती है।  इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो बाप का नाम पूछने पर खुश होकर कहते हैं माओत्से ,देश का नाम पूछने पर भी कहते हैं माओत्से। जैसे छोटा बच्चा सब कुछ रोकर अभिव्यक्त करता है क्योंकि उस दूधमुंहे को भाषा का इल्म नहीं होता वही हाल इनका है। ये एक ही शब्द से वाकिफ हैं :माओत्से।  इनका रोदन और ऊंचे स्वरों में प्रलाप इन दिनों ट्वीटर पर देखा जा सकता है :चेहरे और वेशभूषा और नाम या फिर दल अलग अलग भले हों  वेषधारी साधुओं की तरह काम सबका एक ही देश को डंके की चोट प